सोमवार, 30 जुलाई 2012

चल बेटे चल


चल बेटे चल

श्यामनारायण मिश्र

चल बेटे चल
     और किनारे चल।
बड़े बड़ों की राह में,
     देते नहीं दखल।

कर मत अभी,
बहुत लिखने के
नाटक का उद्घाटन।
सीख
छंद की तलवारों का
थोड़ा तू संचालन।
गीत महाभारत है इसमें
     टिकना नहीं सरल।

शब्द सिर्फ़ डग नहीं
उठाकर
बेमतलब मत झूम।
शब्द शब्द के
दांव पैंतरे
पहले कर मालूम।
समझे बिना ब्यूह
मुश्किल है
करना उथल पुथल।

शब्द नहीं रोड़े
इनको तू
फेंक नहीं बेकार।
शब्द संगमरमर
गढ़ते हैं
छंदों की दीवार।
काव्य नगर में
तब गीतों के
बनते ताजमहल।

लोरी तो क्या,
गद्य, मर्सिया तक भी
गा न सकेगा।
ज्वार क्रांति के,
बालू का ये
दरिया ला न सकेगा।
गीत समय के साथ बहेगा
मत कर कोलाहल।
***  ***  ***
चित्र : आभार गूगल सर्च

14 टिप्‍पणियां:

  1. मन के तारों को झंकृत करने वाला एक बेहतरीन - नवगीत !

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  2. सीख
    छंद की तलवारों का
    थोड़ा तू संचालन।
    गीत महाभारत है इसमें
    टिकना नहीं सरल।

    बहुत सुंदर गीत

    जवाब देंहटाएं
  3. मन को छूती हुई रचना... बहुत बढ़िया...

    जवाब देंहटाएं
  4. ज्वार क्रांति के,
    बालू का ये
    दरिया ला न सकेगा।
    गीत समय के साथ बहेगा
    मत कर कोलाहल।

    बहुत सुंदर रचना ...आभार ...!!

    जवाब देंहटाएं
  5. ज्वार क्रांति के,
    बालू का ये
    दरिया ला न सकेगा।
    गीत समय के साथ बहेगा
    मत कर कोलाहल।
    Ye to ham sabhee ke liye ek seekh hai!

    जवाब देंहटाएं
  6. गीत समय के साथ बहेगा
    मत कर कोलाहल।
    bilkul sahi... sundar rachna ...

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार को ३१/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  8. लोरी तो क्या,
    गद्य, मर्सिया तक भी
    गा न सकेगा।
    ज्वार क्रांति के,
    बालू का ये
    दरिया ला न सकेगा।
    गीत समय के साथ बहेगा
    मत कर कोलाहल।

    अमर सन्देश देती रचना

    जवाब देंहटाएं
  9. सीख
    छंद की तलवारों का
    थोड़ा तू संचालन।
    बहुत बढ़िया सीख

    जवाब देंहटाएं
  10. श्यामनारायण मिश्र जी की सन्देश देती लाजबाब प्रस्तुति के लिए ,,,,आभार

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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