रविवार, 29 जुलाई 2012

भारतीय काव्यशास्त्र – 120


भारतीय काव्यशास्त्र – 120
आचार्य परशुराम राय
पिछले अंक में काव्य में गुण और अलंकार की स्थिति पर चर्चा की गयी थी। इस अंक में काव्य के गुण के भेदों पर चर्चा अभीष्ट है।
काव्य के गुण-भेदों में भी आचार्यों में वैमत्य है। आचार्य वामन अपने काव्यालङ्कारसूत्र में काव्य के दस शब्दगुण और दस अर्थगुण मानते हैं - ओज, प्रसाद, श्लेष, समता, समाधि, माधुर्य, सौकुमार्य (सुकुमारता), उदारता, अर्थव्यक्ति और कान्ति। शब्दगुणों और अर्थगुणों के नाम तो एक ही हैं, परन्तु परिभाषाएँ अलग-अलग हैं। इन्हें नीचे दिया जा रहा है-
शब्द-गुण
ओज- गाढबन्धत्वमोजः – समासबहुलता ओज है।
प्रसाद- शैथिल्यं प्रसादः – पदों का शिथिल होना अर्थात् समास बहुलता का अभाव।
श्लेष- मसृणत्वं श्लेषः – अनेक पदों का एक पद के समान प्रतीति श्लेष है।
समता- मार्गाभेदः समता – मार्ग अर्थात् कोमल, परुष आदि पदों के प्रयोग में परिवर्तन न करना समता है।
समाधि- आरोहावरोहक्रमः समाधिः – पदों में उतार-चढ़ाव अर्थात् समासरहित और समासयुक्त पदों का क्रम समाधि है।  
माधुर्य- पृथक्पदत्वं माधुर्यम् – पदों का अलग-अलग प्रयोग अर्थात् समास का अभाव माधुर्य है।
सौकुमार्य- अजरठत्वं सौकुमार्यम् – काव्य में कठोर वर्णों का अभाव सौकुमार्य है।
उदारता- विकटत्वमुदारता – विकटता अर्थात् विस्तार उदारता है।
अर्थव्यक्ति- अर्थव्यक्तिहेतुत्वमर्थव्यक्तिः – अर्थ को सरलता से व्यक्त करने वाले पदों का प्रयोग अर्थव्यक्ति है।
कान्ति- औज्ज्वल्यं कान्तिः – ग्राम्य पदों का प्रयोग न करना कान्ति है।
अर्थगुण
ओज- अर्थस्य प्रौढिरोजः – अर्थ की प्रौढि (प्रौढ़ता) ओज है। प्रौढि पाँच प्रकार की बतायी गयी है-
पद के प्रतिपाद्य अर्थबोध में वाक्य की रचना, वाक्य के प्रतिपाद्य अर्थ में पद का कथन, विस्तार करना, संक्षेप करना और अर्थ का साभिप्रायत्व-
पदार्थे वाक्यरचनं  वाक्यार्थे च पदाभिधा।
प्रौढिर्व्याससमासौ च साभिप्रायत्वमस्य च।।
प्रसाद- अर्थवैमत्यं प्रसादः – अर्थ-वैमत्य प्रसाद गुण है।
श्लेष- घटना श्लेषः – अर्थ में एकता श्लेष है।
समता- अवैषम्यं समता – प्रकरण के अनुकूल वर्णन अर्थात् एक विषय के वर्णन में किसी अन्य सन्दर्भहीन वर्णन का अभाव समता है।
समाधि- अर्थदृष्टिः समाधिः – अर्थ का दर्शन समाधि है। आचार्य वामन ने इसके दो भेद किए हैं- अयोनि अर्थात् कवि की कल्पना से उद्भूत और दूसरा अन्यच्छायायोनि से उद्भूत अर्थ।
माधुर्य- उक्तिवैचित्र्यं माधुर्यम् – उक्ति में विचित्रता माधुर्य है।   
सौकुमार्य (सुकुमारता)- अपारुष्यं सौकुमार्यम् – कठोरता का अभाव सौकुमार्य है।
उदारता- अग्राम्यत्वमुदारता – ग्राम्यता का अभाव उदारता है।
अर्थव्यक्ति- वस्तुस्वभावस्फुटत्वमर्थव्यक्तिः
कान्ति- दीप्तरसत्वं कान्तिः
लेकिन परवर्ती आचार्यों ने इस विभाजन को स्वीकार नहीं किया है। क्योंकि उनके मतानुसार गुण रस का धर्म है, न कि शब्द या अर्थ का। इसके अलावा परवर्ती आचार्य दस गुणों के स्थान पर केवल तीन गुण- माधुर्य, ओज और प्रसाद ही मानते हैं। इसके लिए आचार्य मम्मट ने निम्नलिखित तीन कारण बताए हैं-
1.      कुछ गुणों का उक्त तीन गुणों में अन्तर्भाव (समावेश) हो जाता है,
2.      कुछ गुण दोषों के परिहार के परिणाम हैं और
3.      कुछ का अभाव काव्य में दोष हो जाता है।   
आचार्य मम्मट आदि आचार्यों ने आचार्य वामन द्वारा बताए श्लेष, समाधि, उदारता और प्रसाद इन चारो शब्द-गुणों का ओज गुण में अन्तर्भाव किया है। माधुर्य को थोड़ा विस्तार के साथ माधुर्य गुण ही माना है। वामनोक्त अर्थव्यक्ति शब्द गुण को प्रसाद गुण के अन्दर अन्तर्भुक्त किया गया है। समता शब्दगुण कहीं दोष भी हो जाता है, इसलिए इसे काव्य का गुण नहीं माना गया है। वामनोक्त सौकुमार्य और कान्ति शब्दगुण कष्टत्व और ग्राम्यत्व दोष के परिहार के परिणाम स्वरूप होते हैं, अतएव अन्य आचार्य इन्हें गुण नहीं मानते हैं।
आचार्य मम्मट ने आचार्य वामन द्वारा कथित ओज गुण (प्रौढि) को काव्य में वैचित्र्यमात्र माना है। उनके मतानुसार इसके अभाव में भी काव्य-व्यवहार सम्भव है। अतएव आचार्य वामन के साभिप्रायत्वयुक्त ओज, प्रसाद, माधुर्य, सौकुमार्य और उदारता अर्थदोषों को आचार्य मम्मट ने अपुष्टार्थत्व, अधिकपदत्व, अनवीकृतत्व, अश्लीलत्व और ग्रम्यत्व दोषों के परिहार के रूप में माना है। इसी प्रकार अर्थव्यक्ति और कान्ति गुणों को आचार्य मम्मट स्वभावोक्ति अलंकार से और रसध्वनि तथा गुणीभूतव्यंग्य के द्वारा वस्तु के स्वभाव की स्पष्टता (अर्थव्यक्ति) और दीप्तरसत्व (कान्ति) मानते हैं, काव्य का गुण नहीं। आचार्य वामन के अन्य अर्थ दोषों को भी शब्ददोषों की भाँति नकारते हुए आचार्य मम्मट आदि आचार्य काव्य केवल तीन गुण- माधुर्य, ओज और प्रसाद मानते  हैं।
इस अंक में बस इतना ही। अगले अंक से उक्त तीनों काव्य-गुणों के स्वरूप पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।  
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3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-956 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  2. अलग परिभाषाओं से गुणों की विशेषता आसानी से समझ में आई..ज्ञानपूर्ण आलेख के लिए आभार..

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  3. आचार्य जी ज्ञान के सागर हैं.
    उन्हें पढ़ना सुखद तथा ज्ञानवर्धक होता है.

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