शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

फ़ुरसत में … प्रेम-प्रदर्शन

फ़ुरसत में … 92

प्रेम-प्रदर्शन

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मनोज कुमार

एक वो ज़माना था जब वसंत के आगमन पर कवि कहते थे,

डाउनलोड करें (1)अपनेहि पेम तरुअर बाढ़ल

कारण किछु नहि भेला ।

साखा पल्लव कुसुमे बेआपल

सौरभ दह दिस गेला ॥ (विद्यापति)

आज तो न जाने कौन-कौन-सा दिन मनाते हैं और प्रेम के प्रदर्शन के लिए सड़क-बाज़ार में उतर आते हैं। इस दिखावे को प्रेम-प्रदर्शन कहते हैं। हमें तो रहीम का दोहा याद आता है,

रहिमन प्रीति न कीजिए, जस खीरा ने कीन।

ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन॥

खैर, खून, खांसी, खुशी, बैर, प्रीति, मद-पान।

रहिमन दाबे ना दबत जान सकल जहान॥

हम तो विद्यार्थी जीवन के बाद सीधे दाम्पत्य जीवन में बंध गए इसलिए प्रेमचंद के इस वाक्य को पूर्ण समर्थन देते हैं, “जिसे सच्चा प्रेम कह सकते हैं, केवल एक बंधन में बंध जाने के बाद ही पैदा हो सकता है। इसके पहले जो प्रेम होता है, वह तो रूप की आसक्ति मात्र है --- जिसका कोई टिकाव नहीं।”

उस दिन सुबह-सुबह नींद खुली, बिस्तर से उठने जा ही रहा था कि श्रीमती जी का मनुहार वाला स्वर सुनाई दिया, “कुछ देर और लेटे रहो ना।”

जब नींद खुल ही गई थी और मैं बिस्तर से उठने का मन बना ही चुका था, तो मैंने अपने इरादे को तर्क देते हुए कहा, “नहीं-नहीं, सुबह-सुबह उठना ही चाहिए।”

“क्यों? ऐसा कौन-सा तीर मार लोगे तुम?”

मैंने अपने तर्क को वजन दिया, “इससे शरीर दुरुस्त और दिमाग़ चुस्त रहता है।”

अब उनका स्वर अपनी मधुरता खो रहा था, “अगर सुबह-सुबह उठने से दिमाग़ चुस्त-दुरुस्त रहता है, तो सबसे ज़्यादा दिमाग का मालिक दूधवाले और पेपर वाले को होना चाहिए।”

“तुम्हारी इन दलीलों का मेरे पास जवाब नहीं है।” कहता हुआ मैं गुसलखाने में घुस गया। बाहर आया तो देखा श्रीमती जी चाय लेकर हाज़िर हैं। मैंने कप लिया और चुस्की लगाते ही बोला, “अरे इसमें मिठास कम है ..!”

श्रीमती जी मचलीं, “तो अपनी उंगली डुबा देती हूं .. हो जाएगी मीठी।”

मैंने कहा, “ये आज तुम्हें हो क्या गया है?”

“तुम तो कुछ समझते ही नहीं … कितने नीरस हो गए हो?” उनके मंतव्य को न समझते हुए मैं अखबार में डूब गया।

मैं आज जिधर जाता श्रीमती जी उधर हाज़िर .. मेरे नहाने का पानी गर्म, स्नान के बाद सारे कपड़े यथा स्थान, यहां तक कि जूते भी लेकर हाजिर। मेरे ऑफिस जाने के वक़्त तो मेरा सब काम यंत्रवत होता है। सो फटाफट तैयार होता गया और श्रीमती जी अपना प्रेम हर चीज़ में उड़ेलती गईं।

मुझे कुछ अटपटा-सा लग रहा था। अत्यधिक प्रेम अनिष्ट की आशंका व्यक्त करता है।

जब दफ़्तर जाने लगा, तो श्रीमती जी ने शिकायत की, “अभी तक आपने विश नहीं किया।”

मैंने पूछा, “किस बात की?”

बोलीं, “अरे वाह! आपको यह भी याद नहीं कि आज वेलेंटाइन डे है!”

ओह! मुझे तो ध्यान भी नहीं था कि आज यह दिन है। मैं टाल कर निकल जाने के इरादे से आगे बढ़ा, तो वो सामने आ गईं। मानों रास्ता ही छेक लिया हो। मैंने कहा, “यह क्या बचपना है?”

उन्होंने तो मानों ठान ही लिया था, “आज का दिन ही है, छेड़-छाड़ का ...”

मैंने कहा, “अरे तुमने सुना नहीं टामस हार्डी का यह कथन – Love is lame at fifty years! यह तो बच्चों के लिए है, हम तो अब बड़े-बूढ़े हुए। इस डे को सेलिब्रेट करने से अधिक कई ज़रूरी काम हैं, कई ज़रूरी समस्याओं को सुलझाना है। ये सब करने की हमारी उमर अब गई।”

“यह तो एक हक़ीक़त है। ज़िन्दगी की उलझनें शरारतों को कम कर देती हैं। ... और लोग समझते हैं ... कि हम बड़े-बूढ़े हो गए हैं।

“बहुत कुछ सीख गई हो तुम तो..।”

वो अपनी ही धुन में कहती चली गईं,

“न हम कुछ हंस के सीखे हैं,

न हम कुछ रो के सीखे है।

जो कुछ थोड़ा सा सीखे हैं,

तुम्हारे हो के सीखे हैं।”

images (1)मैंने अपनी झेंप मिटाने के लिए विषय बदला, “पर तुम्हारी शरारतें तो अभी-भी उतनी ही अधिक हैं जितनी पहले हुआ करती थीं ...”

उनका जवाब तैयार था, “हमने अपने को उलझनों से दूर रखा है।”

उनकी वाचालता देख मैं श्रीमती जी के चेहरे की तरफ़ बस देखता रह गया। मेरी आंखों में छा रही नमी को वो पकड़ न लें, ... मैंने चेहरे को और भी सीरियस कर लिया। चेहरे को घुमाया और कहा, “तुम ये अपना बचपना, अपनी शरारतें बचाए रखना, ... ये बेशक़ीमती हैं!”

अपनी तमाम सकुचाहट को दूर करते हुए बोला, “लव यू!”

और झट से लपका लिफ़्ट की तरफ़।

शाम को जब दफ़्तर से वापस आया, तो वे अपनी खोज-बीन करती निगाहों से मेरा निरीक्षण सर से पांव तक करते हुए बोली, “लो, तुम तो खाली हाथ चले आए …”

“क्यों, कुछ लाना था क्या?”

बोलीं, “हम तो समझे कोई गिफ़्ट लेकर आओगे।”

मन ने उफ़्फ़ ... किया, मुंह से निकला, “गिफ़्ट की क्या ज़रूरत है? हम हैं, हमारा प्रेम है। जब जीवन में हर परिस्थिति का सामना करना ही है तो प्रेम से क्यों न करें?

लेकिन वो तो अटल थीं, गिफ़्ट पर। “अरे आज के दिन तो बिना गिफ़्ट के नहीं आना चाहिए था तुम्हें, इससे प्यार बढ़ता है।”

मैंने कहा, “गिफ़्ट में कौन-सा प्रेम रखा है? ...” अपनी जेब का ख्याल मन में था और ज़ुबान पर, “जो प्रेम किसी को क्षति पहुंचाए वह प्रेम है ही नहीं।” मैंने अपनी बात को और मज़बूती प्रदान करने के लिए जोड़ा, “टामस ए केम्पिस ने कहा है – A wise lover values not so much the gift of the lover as the love of the giver. और मैं समझता हूं कि तुम बुद्धिमान तो हो ही।”

उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि आज ... यानी प्रेम दिवस पर उनके प्रेम कभी भी बरस पड़ेंगे। मेरा बार बार का एक ही राग अलापना शायद उनको पसंद नहीं आया। सच ही है, जीवन कोई म्यूज़िक प्लेयर थोड़े है कि आप अपना पसंदीदा गीत का कैसेट बजा लें और सुनें। दूसरों को सुनाएं। यह तो रेडियो की तरह है --- आपको प्रत्येक फ्रीक्वेंसी के अनुरूप स्वयं को एडजस्ट करना पड़ता है। तभी आप इसके मधुर बोलों को एन्ज्वाय कर पाएंगे।

मैंने सोचा मना लेने में हर्ज़ क्या है? अपने साहस को संचित करता हुआ रुष्टा की तरफ़ बढ़ा।

“हे प्रिये!”

“क्या है ..(नाथ) ..?”

“(हे रुष्टा!) क्रोध छोड़ दे।”

“गुस्सा कर के मैं कर ही क्या लूंगी?”

“मुझे अपसेट (खिन्न) तो किया ही ना ...”

“हां-हां सारा दोष तो मुझमें ही है।”

“चेहरे से से लग तो रहा है कि अब बस बरसने ही वाली हो।”

“तुम पर बरसने वाली मैं होती हूं ही कौन हूं?”

“मेरी प्रिया हो, मेरी .. (वेलेंटाइन) ...”

“वही तो नहीं हूं, इसी लिए ,,, (अपनी क़िस्मत को कोस रही हूं) ...”

"खबरदार! ऐसा कभी न कहना!!"

"क्यों कहूंगी भला! मुझे मेरा गिफ्ट मिल जो गया. सब कुछ खुदा से मांग लिया तुमको मांगकर!"

"........................"

***

हमारे जीवन में हमारा प्रेम-प्रदर्शन इसी तरह होता आया है।

इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांति भवन में टिक रहना

किन्तु पहुंचना उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं

अथवा उस आनन्द भूमि में जिसकी सीमा कहीं नहीं। (जयशंकर प्रसाद)

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53 टिप्‍पणियां:

  1. padhne me atyant rochak...sath me itna behtarin massage जीवन कोई म्यूज़िक प्लेयर थोड़े है कि आप अपना पसंदीदा गीत का कैसेट बजा लें और सुनें। दूसरों को सुनाएं। यह तो रेडियो की तरह है --- आपको प्रत्येक फ्रीक्वेंसी के अनुरूप स्वयं को एडजस्ट करना पड़ता है। तभी आप इसके मधुर बोलों को एन्ज्वाय कर पाएंगे।..wakai yahi jindagi hai...sadar badhayee aaur sadar pranam ke sath

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  2. प्रेम के बारे में प्रेमचंदजी से पूर्णतः सहमत !

    आपकी 'प्रेम-दिवस' वाली कमेंट्री अच्छी रही,पर लगता है आपने भाभीजी के साथ न्याय नहीं किया है.उनकी ओर से बताए गए कुछ आग्रह ज़बरिया और कल्पित लगते हैं.हमारे ज़माने के लोगों में इस दिवस के प्रति ऐसी कोई आसक्ति नहीं है.

    ..फिर भी,इस बासंती-मौसम में भाभीजी के दीदार कराने का आभार !

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  3. “न हम कुछ हंस के सीखे हैं,

    न हम कुछ रो के सीखे है।

    जो कुछ थोड़ा सा सीखे हैं,

    तुम्हारे हो के सीखे हैं।”
    तो फिर प्यार में कंजूसी क्यों प्यार बाँटते चलो

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  4. बेहतरीन..आनन्द आया...बधाई...हो!! आप दोनों को प्रणाम!!

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  5. वाह , आज तो आप प्रेम की गली में फुरसतिया रहे है . प्रेम के लिए किसी विशेष दिवस की संकीर्णता हमारे गले नहीं उतरती. वैसे नोक झोक मस्त रही , बिहारी की पंक्तिया याद आई . "कहत नटत रीझत खीझत" अब हमे तो आभास था इस पोस्ट का उस दिन आपसे बात होने के बाद , जब हमारी जेब खाली हुई थी और आप अपनी जेब खाली होने से बचा लेने पर हर्षित . वैसे जीवन के इस मोड़ पर हर तरंग दैर्ध्य पर संगीत सुनने वाली बात से हम पूर्णतया सहमत. अगली मुलाकात में भाभी जी का कान भरता हूँ , आपकी जेब खाली कराने की जुगत के विषय में . मस्त फुर्सतियाये है .

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    1. उस दिवस को तो जेब बचा ले गया, पर जो दिवस एक सप्तह बाद आने वाला है उससे बचा पाना मुश्किल है। :) :)

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  6. बताइये, प्रेमदिवस में सारी दुनिया जागी रहती है और आपको ऊँघने को कहा जा रहा है...

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  7. प्रेम धुन की तरंगो में लहराते उतराते यथार्थ के धरातल पर पहुँचकर अच्छा लगा। कल्पनाओं में विचरण करना और बात है, लेकिन जीवन की वास्तविकता यही है कि हमें "आपको प्रत्येक फ्रीक्वेंसी के अनुरूप स्वयं को एडजस्ट करना पड़ता है।" - और इसी में जीवन के सभी रस हैं, आनन्द है, प्रेम है। जिसने स्वयं को हर फ्रीक्वेन्सी के अनुरूप एडजस्ट करना सीख लिया है, वही सुखी है। प्रेम कोई एक दिन की अभिव्यक्ति नहीं है, यह तो हर पल जीने का नाम है। थोड़ी नाटकीयता के साथ कुछ-कुछ गुदगुदाती पोस्ट कई सन्देश एक साथ दे जाती है। यथा - "जब जीवन में हर परिस्थिति का सामना करना ही है तो प्रेम से क्यों न करें?", "जो प्रेम किसी को क्षति पहुंचाए वह प्रेम है ही नहीं।" "ज़िन्दगी की उलझनें शरारतों को कम कर देती हैं। ... और लोग समझते हैं ... कि हम बड़े-बूढ़े हो गए हैं", और "जीवन कोई म्यूज़िक प्लेयर थोड़े है कि आप अपना पसंदीदा गीत का कैसेट बजा लें और सुनें। दूसरों को सुनाएं। यह तो रेडियो की तरह है --- आपको प्रत्येक फ्रीक्वेंसी के अनुरूप स्वयं को एडजस्ट करना पड़ता है। तभी आप इसके मधुर बोलों को एन्ज्वाय कर पाएंगे"।

    आप दोनों को शुभकामनाएँ।

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  8. बहुत सुंदर प्यारी सी लगी यह पोस्ट बहुत सारे भाव समेटे,
    मनोज भाई जी, सच कहूँ आपकी वेलेंटाइन तो ( भाभी जी ) बड़ी खुबसूरत है
    बधाई हो आप दोनों को !

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  9. बहुत सुंदर अभिव्याक्ति valentine day के मौक़े पर.
    और ये :-
    “न हम कुछ हंस के सीखे हैं,
    न हम कुछ रो के सीखे है।

    जो कुछ थोड़ा सा सीखे हैं,

    तुम्हारे हो के सीखे हैं।”



    ग़ज़ब है ग़ज़ब.

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  10. वैसे प्रेम प्रदर्शन करने का भाव हैं नहीं , दो व्यक्तियों के बीच का प्रेम उन्हें देखकर नजर आ जाता है , वरना तो लम्बे चौड़े बुके और गिफ्ट के बीच भी चेहरा चुगली खा जाता है !
    इस नोंक झोंक के बीच ही पूरे जीवन का आनंद है !
    आप दोनों को बहुत बधाई !
    अच्छी पोस्ट !

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  11. अभिव्यक्ति के इसी संकोच-भाव की मर्यादा के कारण जीवन में प्रेम का शतदलकमल खिलता है।

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  12. फोटो मेन भी लग रहा है की सविता जी ने ज़बरदस्ती पकड़ कर बैठाया हुआ है :):) ... अच्छा व्यंगात्मक लेख

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  13. अब छोटे भाई के प्रेम प्रदर्शन में हमारे लिए तो परम्परा/संस्कार आड़े आ जाते हैं... इसलिए हम तो स्माइली चिपका कर निकलने वाले थे.. फिर लगा कि जब पिता के जूते पुत्र के पाँव में आ जाएँ तो वह मित्र की श्रीणी में आ जाता है, तो यहाँ तो समवयस्क अनुज की बात है.. लिहाजा हम भी थोड़ी स्वतन्त्रता लेने को बाध्य हो जाते हैं.. मौसम का असर है शायद.. मगर कहें क्या.. नीरज जी की पंक्तियाँ कुछ याद आ रही हैं..
    /
    प्रेम है कि ज्योति-स्नेह एक है,
    प्रेम है कि प्राण-देह एक है,
    प्रेम है कि विश्व गेह एक है,
    प्रेमहीन गति, प्रगति विरुद्ध है।
    प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥
    /
    बस राम-सीता के बने रहिये और जीवन आपका प्रेम रससिक्त रहे!!

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    1. ...तो क्या यह मान लिया जाय कि मौसम का असर आपके ऊपर शुरू हो चुका है .....वैसे अभी होली में बहुत दिन बाकी हैं ......हमारे ऊपर तो इनकम टैक्स वाले मौसम के कारण होली के दिन भी मौसम कुछ उदास ही रहेगा ...आप निर्लिप्त हैं .....बधाई हो :))

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    2. बात तो सही है कि यह ‘इनकम टैक्स’ वालों का महीना है।
      लेकिन बात जब प्यार, प्रेम और मस्ती की हो तो हम इनकम टैक्स को तोड़-मरोड़ कर ‘इन कम टैक्स’ कर देते हैं ... यानी टैक्स कम आओ!

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  14. vaise to uphaar koi tarazu nahi hai prem k liye....aur kabhi kabhi tuchh bhi lagte hain uphaar aise prem k aage lekin kahte hain na kabhi kabhi chakit karna bhi acchha lagta hai aur prem ko gahrayi deta hai to upharo ka usme visheh hath hota hai.

    bahut bindaas lekhan prastut kiya hai.

    photo bahut acchha laga. aabhar hame dikhane k liye.

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  15. “न हम कुछ हंस के सीखे हैं,

    न हम कुछ रो के सीखे है।

    जो कुछ थोड़ा सा सीखे हैं,

    तुम्हारे हो के सीखे हैं।”
    .....इसके बाद भी कुछ कहने को बचा है क्या ...:)
    आप दोनों का चित्र भी अच्छा लगा आपके लेख को आगे बढ़ाता सा .....:)

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  16. ये प्रेम की नोंक झोंक ऐसे ही चलती रहे ……………प्रेम बेशक प्रदर्शन की वस्तु नही मगर कभी कभी इज़हार तो चाहता ही है …………इस भाव को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है अब तक होठों पर हंसी कायम है ………

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  17. :):) बेहद रोचक और शायद हर उस दंपत्ति की नौक झोंक जिसने छात्र जीवन से सीधे गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया.पर कभी कभी यूँ ही रूमानी होने में बुरा क्या है :).तस्वीर अच्छी है जरा रेडियो का बटन घुमा कर मुस्कुरा ही देते:):).

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    1. कभी-कभी लगता है, .. मुस्कराना भी बड़ा गंभीर मसला है ... :)

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  18. बहुत बढ़िया और तस्वीर ख़ास करके

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  19. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  20. प्रभावशाली प्रेरक रचना कुछ नया सीखने को मिला..

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  21. फ़ोटो भी बहुत अच्छी है.उस दिन तो आपने कहा था कि उन्होंने 'भोलंटाइन-दिवस' कहा !
    (वैसे बिहार में व को भ बोलते हैं लोग )

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  22. ओह! आप टिप्पणी भी फॉलो करती हैं। कितना मनोबल मिलता है इन बातों से कह नहीं सकता।

    शब्द वेलेंटाइन तो अंग्रेज़ों की देन है। इसी महीने में शिवरात्रि भी आती है। और शिवजी का पार्वती के साथ विवाह भी प्रेम का प्रतीक ही तो है। इसलिए भोला बाबा के नाम पर हमने इसका नामाकरण भोलंटाइन बाबा कर दिया।

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  23. कई महत्त्वपूर्ण 'तकनिकी जानकारियों' सहेजे आज के ब्लॉग बुलेटिन पर आपकी इस पोस्ट को भी लिंक किया गया है, आपसे अनुरोध है कि आप ब्लॉग बुलेटिन पर आए और ब्लॉग जगत पर हमारे प्रयास का विश्लेषण करें...

    आज के दौर में जानकारी ही बचाव है - ब्लॉग बुलेटिन

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  24. यह तो बढ़िया नामकरण किया है. भोलंटाइन वैलेंटाइन के बड़े भाई लग रहे हैं.

    वैसे बहुत सारे और अलग अलग भाव और जिंदगी के रंग समेटे हुए है यह प्रस्तुति. संगीता जी की बात में कुछ सच्चाई है क्या?

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    1. संगीता जी हमारी “उनकी” मायके वालों के मुहल्ले में रहती हैं।

      इसलिए उनसे असहमत हो नहीं सकता .. :)

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  25. वाह!!!!!मनोज जी, बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति,....बहुत सुंदर......

    MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  26. जीवन कोई म्यूज़िक प्लेयर थोड़े है कि आप अपना पसंदीदा गीत का कैसेट बजा लें और सुनें। दूसरों को सुनाएं। यह तो रेडियो की तरह है --- आपको प्रत्येक फ्रीक्वेंसी के अनुरूप स्वयं को एडजस्ट करना पड़ता है। तभी आप इसके मधुर बोलों को एन्ज्वाय कर पाएंगे।
    beautiful!!!

    lovely post!
    Regards,

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  27. भैया जी ! सादर प्रणाम ! आपने तो एक युग विशेष की प्रतिनिधि प्रेम कहानी लिख दी है. जब आपने "लव यू" कहा था तो मुझे लगा शायद मुंह झुका के या कहीं दूसरी तरफ देखते हुए कहा होगा ...या फिर चेहरा हाथ से ढकते हुए ....शर्म जो आ रही थी ......

    बिलकुल इसी तरह हमारी श्रीमती जी भी रार करती हैं .....उन्हें सब याद रहता है और मैं सब कुछ भूला रहता हूँ.

    क्या अपने युग की सारी महिलायें एक जैसी ही हैं ?

    वर्त्तमान पीढ़ी में प्रदर्शन कहीं अधिक है और गहराई ......अपेक्षाकृत कम ....

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    उत्तर
    1. क्या दिल की बात कही है आपने कौशलेन्द्र भाई!!

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  28. बहुत ही सरस वर्णन आपने किया है। साथ में आपकी युगल तस्वीर रचना में चार चाँद लगा रही है। आभार।

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  29. संकीर्णता तो नहीं सजीवता दे दी है आपने , दोहों व लोकोक्तियों के द्वारा / प्रेम रस तो प्रेम रस है बहेगा ही ,बांधो तो बंदन है नहीं तो उन्मुक्तता है ..... रुचिकर स्पष्ट आलेख साधुवाद जी /

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  30. बहुत ही बेहतरीन संवाद पढ़ने को मिले आज आपके इस आलेख के माध्यम से ! कुछ दिनों पूर्व मेरे घर में एक बहुत प्यारा सा पोस्टर था जिस पर संदेश लिखा था, "If you love somebody, show it."
    प्रेम प्रदर्शन की माँग करता है ! विशेष रूप से स्त्रियाँ इसकी अपेक्षा रखती हैं जबकि अक्सर पुरुष इस मामले में कंजूसी बरतते हैं ! रोचक संस्मरण सुनाया आपने ! थोड़ा विलम्ब से ही सही पर आप दोनों को प्रेम दिवस की ढेर सारी शुभकामनायें एवं बधाइयाँ !

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    उत्तर
    1. अब मैंने भी संकल्प ले लिया ... प्रदर्शन करके ही रहूंगा।
      (अगले पोस्ट में उसकी प्रतिक्रिया भी बताऊंगा।)

      हटाएं
  31. बहुत ही सुन्दर मनोज भाई .... जिंदगी के कई मायने है वाह

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  32. अगर सुबह-सुबह उठने से दिमाग़ चुस्त-दुरुस्त रहता है, तो सबसे ज़्यादा दिमाग का मालिक दूधवाले और पेपर वाले को होना चाहिए।
    ----------

    यह सार्थक तर्क साथ लिये जा रहा हूं। बहुत काम आयेगा।

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  33. मनोज जी सादर अभिवादन ,
    जीवन की यथार्थ मनोरवृत्ति को पाठकों के समक्ष बड़ी ही सहजता से आप परोस देते है ....यही सहजता और भोलापन आपको सामान्य से अलग कर देता है | वास्तव में एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना प्रणय तो नहीं कहा जा सकता है आचार्य रजनीश के अनुसार ...प्रणय तो वह बिंदु है जहाँ न रूठना है न मनाना है न मै है और न तुम प्रेम को कुछ एस तरह समझे तो पाएंगे प्रेम = परे +मय अर्थात मय को निकाल देने के बाद न तो भाभी जी आपसे गिफ्ट का इजहार करतीं और न ही आप उनके ऊपर साहित्त्यिक लबादा को सजोये हुयी बौद्धिकता के माध्यम से अपने शब्द जाल से उनको मानाने की कोशिश करते | यहाँ भी सब कुछ औपचारिकता ही नहीं है कहीं न कहीं प्रेम के बीज अंकुरण हेतु आकांक्षी हैं .........मानसिकता का विलय होना ही पवित्र प्रेम की खिड़की है | हमें जीवन साथी की सोच को आत्मसात करना ही चाहिए .......संभव है प्रेम से मोक्ष हमें मिल ही जाये....


    अपने ने लिखा है '' मैं टाल कर निकल जाने के इरादे से आगे बढ़ा, तो वो सामने आ गईं। मानों रास्ता ही छेक लिया हो। मैंने कहा, “यह क्या बचपना है?”

    भाई ! रहीमदास जी ने ये भी तो लिखा है -
    रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय|
    जोड़े से फिर न जुड़े जुड़े गांठ पड जाय ||

    फिल हाल प्रेम दिवस पर आपकी लाजबाब प्रस्तुति पढ़ने को मिली .....कोटि कोटि सादर आभार.|

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    1. आभार नवीन जी। आपने इस आलेख को एक नई दिशा दी, जो आध्यात्मिकता के बहुत क़रीब है।
      यदि किसी पाठक को कोई आलेख इतनी लंबी टिप्पणी के लिए प्रेरित करे तो उसमें आलेख की सार्थकता निहित है, ऐसा मैं मानता हूं।

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  34. बढ़िया रोचक....
    आप दोनों को बधाई और सादर नमन.

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  35. बहुत सहजता से मन के उदगार व्यक्त किये ...सुंदर आलेख और सुंदर चित्र ...
    आप दोनों को बधाई एवं शुभकामनायें ......

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  36. जो कोटेशन्स आपने चुने हैं सभी लाजवाब हैं, आपकी पोस्ट की तरह. बस इस पोस्ट पर मैम की भी एक टिप्पणी हो जानी चाहिए थी... :- )

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  37. भाई आप खुशनसीब हैं कि...भाभी जी वलेंटाइन डे मानने पर आमादा हैं...वर्ना अरेंज मैरिज में तो लव यू बोलने कि भी गुंजाईश नहीं रहती...सारा प्यार कोलेस्ट्राल बढ़ाने में ही उड़ेल दिया जाता है...और हाँ...बूढ़े हों आपक़े दुश्मन...माशा अल्ला फोटो में तो पूरे नव-दम्पति ही नज़र आ रहे हैं...

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  38. प्रेम का प्रदर्शन ..बहुत खूब ...

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